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कुछ उनकी हरकतों को हमने तग़ाफ़ुल किया, कुछ वो हमें भरी महफिल में तग़ाफ़ुल कर गए॥ तग़ाफ़ुल - नजरअंदाज

बारी तुम्हारी

बहुत ले लिए वस्ल के मजे़, अब मौसम -ए- हिज़्  जीकर तुम भी देखो ॥ हिज़्  - विरह

मां

मां तू कहां चली गई है , तेरे बिन तेरी बेटी अकेली हो गई है , तू ही तो एक सहारा थी...जब तेरी बेटी नटखट आवारा थी। हर पल तुझे याद करती हूं। तुझसे मिलने की फरियाद करती हूं , जब तू थी तब तेरी कदर न जानी, अब यह बात सामने है मानी॥ तेरा ही नाम ज़बा पर रहे, तेरे वापस आने की राह देख रहे । तुम आओगे तो सब ठीक हो जाएगा , जो रूठ गया है वो भी मान जाएगा मां तू लौट आ वापस.. संग अपने खुशियां ला वापस , बहुत कुछ मैं कहना चाहती हूं.. लग गले मैं रोना चाहती हूं। मां तू लौट आ वापस॥

कुछ यूं बदली सच्चाई..

सच्चाई वही बदला करती है, जब हम नजरअंदाज करने लगते हैं, अपने हमेशा तभी बदला करते हैं, जब वो हमें अपने लगते हैं॥ यह झूठ का दानव हर दिन सच खा जाया करता है.. इसी के साथ एक सच का पर्दा यूं ही गिर जाया करता है॥

एक चाह

सपनों की उड़ान मैं भी भरना चाहती हूं, हां मां मैं भी उड़ना चाहती हूं॥ यह जिंदगी कितने दिलचस्प है ? इसकी राह में क्या सिर्फ दर्द है? इसका स्वाद मैं भी चखना चाहती हूं, हां मां मैं भी उड़ना चाहती हूं॥ इसके हर मौसम को मैं जीना चाहती हूं, हां मां मैं भी उड़ना चाहती हूं॥ लगी चोट तो मैं सह लूंगी, दिल के खोल किवाड़ मैं रह लूंगी, तू ही तो कहती है.. कि मैं तेरा ही अंश हूं, इस भरे भारत का मैं भी तो  वंश हूं मेरी नहीं तो इस दिल की सुन और मुझे जाने दे ऐ! मां मुझे मेरे सपने बनाने दे तू अब ना रोक मुझे तू, ना टोक मुझे तू, बन परिंदा मुझे भी अब और जाने दे तू ॥
कमी शायद हमें ही रही होगी.. जो इबादतों में रिफ़ाकत उसका हर मंदिर मस्जिद की चौखट पर मांग लिया करते थे॥ रिफ़ाकत- साथ

और बस एक तुम

एक  रात एक ये बातें तुम्हारी एक ये चांद, एक ये यादें तुम्हारी एक ये खामोशी, एक ये नाराजगी तुम्हारी एक ये नशा, एक ये शरबती आंखें तुम्हारी एक ये हवा, एक ये अदा तुम्हारी एक आदत, एक चाहत, एक हसरत, एक जरूरत.. ये  मोहब्बत हमारी और बस "एक तुम" ॥